इस्लाम के प्रवर्तक हजरत मोह’म्मद पैगं’बर साहब, उनकी बेटी फातिमा, दामाद हजरत अली और नवासे इमा’म ह’सन तथा इमाम हु’सैन इस् लाम के पंजतन और इनकी अहलेबैत यानि पीढ़ी सिर्फ एक कौम की नहीं, बल्कि पूरी इंसानियत के लिए रहमतों का खजाना है। अहले बैत और हरत मौला अली से मोहब्बत किए बग़ैर कोई शख्स मुस लमान हो नहीं सकता ।
हमारा दीन मौला और खानख्वाहों की बदौलत फैला है। हजरत मोह’म्मद पैगं’बर साहब के बाद क़ुर’आन ए पाक और अहलेबैत दोनों ही इस् लाम में ऐसी चीजें हैं, जिनका दामन हर मोमिन को थाम कर रखना चाहिए। इस आशय के विचार मुफ़्ती मोहम् मद शफ़ीक़ कादरी तथा इस्ला मिक स्कालर खिर हु’सैन नक्शबंदी ने अपनी तकरीर में हाजरी ने मजलिस के दरमियान व्यक्त किये ।
शहर में कौमी एकता की मिसाल बने जश्ने विलादते मौला ए क़ायनात प्रोग्राम का आयोजन मौला हु सैन ह्यूमैनिटी फाउंडेशन की जानिब से किया था। प्रोग्राम में खुशुशी उले माओं ने अपनी तकरीर में कुछ ऐसी बातें बताकर यह साबित किया कि हिंदुस्तान की सरजमी गंगा जमुनी तहजीब का नायाब नमूना है।
उन्होंने कहा दीन और इंसानियत से भरे इस् लाम के लिए हजरत मोह म्मद पैगं बर साहब ने कहा था कि हिंद की धरती से वफ़ा की खुशबू आती है । इसीलिए हिंदुस्तान में सभी धर्मों के लोग हजरत इमाम हु सैन को आज भी आदर्श मानते हैं। यह किसी की व्यक्तिगत नहीं, बल्कि पूरी इंसानियत के लिए धरोहर है।
उनसे पहले इस्लामिक स्कालर खिर हुसैन ने दीनी ऐतिहासिक किताबों के हवालों से इस् लाम का तवा रीख़ बयां की । उन्होंने कहा कि अली की मोहब्बत ना तो सियानियत है और ना सुन्निायत बल्कि ईमा न है। शिराते मुस्तकीम अर्थात सच्ची राह है जो रब को भी पसंद है।
कॉन्फ्रेंस की शुरुआत शहर और दीगर जगहों से पहुंचे इस् लाम के नामचीन लोगों के साथ शहर के सभी मानवतावादी धार्मिक संगठन से वाबस्ता लोगों द्वारा उलेमाओं के इस्तकबाल से हुई । दोनों उले माओ ंकी तक़रीर सुनने के लिए बड़ी संख्या में हर वर्ग के लोग मजलिस में मौजूद थे। आयोजन कोविड 19 की गाइड लाइन के पालन के साथ शारीरिक दूरी और, मास्क आदि के साथ संपन्ना हुआ।