राष्ट्री”य स्वयं’सेवक संघ के सरसंघ’चालक मो’हन भा’गवत ने शुक्रवार 1 जनवरी को कहा कि अगर कोई हिन्’दू है तब वह देश’भक्त होगा और यह उसका बुनियादी चरित्र एवं प्रकृति है। संघ प्रमुख ने महात्मा गांधी की उस टिप्पणी को उद्धृत करते हुए यह बात कही जिसमें उन्होंने कहा था कि उनकी देशभ’क्ति की उत्’पत्ति उनके धर्म से हुई है। हालांकि मो’हन भाग’वत यह कहना भूल गए कि महात्मा गांधी ने यह भी कहा था कि ‘हां मैं एक मुस्लि’म, एक बौद्ध और एक यहू’दी भी हूं।
भागव’त ने हालांकि सं’घ के अपने ‘नाय’क’ नाथू’राम गो’डसे का उल्ले’ख नहीं किया जो अपने जीवन में हिं’दू राष्ट्र’वाद के प्रबल समर्थक थे, जिन्होंने 30 जनवरी 1948 को महात्मा गांधी की छा’त्री में गो’ली मा’री थी।
संघ प्रमुख ने कहा कि हि#न्दू है तो उसे देश’भक्त होना ही होगा क्योंकि उसके मूल में यह है। वह सो#या हो सकता है जिसे जगाना होगा, लेकिन कोई हि’न्दू भा’रत विरोधी नहीं हो सकता। जब तक मन में यह डर रहेगा कि आपके होने से मेरे अस्तित्व को खतरा है और आपको मेरे होने से अपने अस्तित्व पर खतरा लगेगा तब तक सौदे तो हो सकते हैं लेकिन आत्मीयता नहीं।
उन्होंने कहा, महापुरुषों को कोई अपने हिसाब से परिभाषित नहीं कर सकता.” उन्होंने कहा कि यह किताब व्यापक शोध पर आधारित है और जिनका इससे विभिन्न मत है वह भी शोध कर लिख सकते हैं। गांधीजी ने कहा था कि मेरी देशभक्ति मेरे धर्म से निकलती है। मैं अपने ध’र्म को समझकर अच्छा देश’भक्त बनूंगा और लोगों को भी ऐसा करने को कहूंगा। गांधीजी ने कहा था कि स्वरा’ज को समझने के लिए स्वध’र्म को समझना होगा।
जे के बजाज और एम डी श्रीनिवास लिखित पुस्तक ‘मेकिंग आफ ए हि’न्दू पैट्रियट : बैकग्राउंड आफ गांधीजी हि#न्द स्वराज’ का लोकार्पण करते हुए मोहन भाग’वत ने यह बात कही। भाग’वत ने कहा कि किताब के नाम और मेरा उसका विमोचन करने से अटकलें लग सकती हैं कि यह गांधी जी को अपने हिसाब से परिभाषित करने की कोशिश है।
भाग’वत इतने पर ही नहीं रुके और उन्होंने कहा कि धर्म के बारे में गांधी की समझ यह कहती है कि ” विविधता में एकता हमारी भावना है और केवल नीति का विषय नहीं है। गांधीजी ने कहा था कि मैं अपने ध’र्म का सख्ती से पालन करूंगा लेकिन अन्य धर्मों का भी सम्मान करूंगा। भारतीय चिंतन का मूलमंत्र यही है। अंतर का मतलब अलगा’ववाद नहीं है।
भाग’वत ने आर’एसएस के संस्थापक केशव बलि’राम हेड’गेवार के साथ गांधी की राय के बीच एक कड़ी खोजने की कोशिश की और कहा “गां’धीजी ने स्पष्ट रूप से कहा कि पश्चि’मी सभ्यता ने हमारी अपनी सं’स्कृति को बर्बाद कर दिया है और हम ‘ध’र्मभ्र’ष्ट’ बन गए हैं। डॉ. हेड’गेवार भी कहते थे कि दूसरों को दोष मत दो। तुम गुलाम हो गए क्योंकि तुम गुलाम होने के लिए तैयार थे। आपमें कुछ कमी थी। मैंने गांधीजी में इस तरह के विचार को देखा।”
भागव’त द्वारा जारी पुस्तक में दावा किया गया है कि 1893-94 के दौरान गांधी को दक्षिण अफ्रीका में उनके मु’स्लिम नियोक्ता और ईसा’ई सहयोगियों द्वारा धर्मांतरण के लिए दबाव डाला गया था, लेकिन उन्होंने इनकार कर दिया। और 1905 तक, वह एक क’ट्टर हिं’दू बन गए थे।