नई दिल्ली : उत्तराखण्ड में मुंशी की बेटी बनी जज
उत्तराखंड न्यायिक सेवा सिविल जज (जूनियर डिवीजन) की परीक्षा पास कर रुड़की की आयशा फरहीन ने शहर का नाम रोशन किया है। उन्होंने पहले प्रयास में ही इस परीक्षा को पास करने में सफलता प्राप्त की है। आयशा को जज बनने की प्रेरणा अपने स्वजनों से ही मिली है। उनके पिता शराफत अली रुड़की कचहरी में अधिवक्ता के पास मुंशी का कार्य करते हैं। परिवार के लोग बेटी की इस कामयाबी से फूले नहीं समा रहा हैं। घर में बधाई देने वालों का तांता लगा हुआ है।
इन्होंने हासिल की परीक्षा में कामयाबी
उदीशा सिंह, आदर्श त्रिपाठी, अंजू, हर्षिता शर्मा, स्नेहा नारंग, प्रियांशी नगरकोटि, गुलिस्ता अंजुम, प्रिया शाह, आयशा फरहीन, जहां आरा अंसारी, नितिन शाह, संतोष पच्छमी, शमशाद अली, देवांश राठौर, सिद्धार्थ कुमार, अलका और नवल सिंह बिष्ट ।
कुल 17 उम्मीदवारों ने हासिल की कामयाबी
विस्तार
उत्तराखंड लोक सेवा आयोग ने मंगलवार को उत्तराखंड न्यायिक सेवा सिविल जज जूनियर डिवीजन परीक्षा 2019 का परिणाम जारी कर दिया। इस परीक्षा में उदीशा ने प्रदेश में टॉप किया है।
आयोग ने इसी साल 22 मई को पीसीएस-जे की मुख्य परीक्षा का परिणाम जारी किया था। इस परीक्षा में चयनित उम्मीदवारों को 17 से 20 सितंबर के बीच साक्षात्कार के लिए बुलाया गया। मंगलवार को जारी नतीजों में कुल 17 उम्मीदवारों ने कामयाबी हासिल की है।
इनमें पहले स्थान पर उदीशा सिंह, दूसरे स्थान पर आदर्श त्रिपाठी और तीसरे स्थान पर अंजू रहे। अंतिम परीक्षा में अनारक्षित की कटऑफ 488, अनारक्षित उत्तराखंड महिला श्रेणी की 486, आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग की 408, अन्य पिछड़ा वर्ग की 444, अन्य पिछड़ा वर्ग उत्तराखंड महिला की 460 और अनुसूचित जाति की कटऑफ 419 रही है।
डीएवी की गुलिस्ता बनी जज
डीएवी पीजी कॉलेज की पूर्व छात्रा गुलिस्ता अंजुम पीसीएस-जे परीक्षा पास कर ली है। उन्होंने एलएलबी में गोल्ड मेडल हासिल किया था। उनकी इस कामयाबी पर परिवार में खुशी की लहर है।
बुड्डी गांव निवासी गुलिस्ता अंजुम के पिता हाजी हुसैन ने बताया कि इससे पहले उनका बड़ा बेटा असद अहमद वर्ष 2015 में पीसीएस परीक्षा पास कर चुका है। वह वर्तमान हरिद्वार में तैनात है। गुलिस्ता ने 10वीं, 12वीं की पढ़ाई जनता इंटर कॉलेज नया गांव से की।
इसके बाद डीएवी से बीए की पढ़ाई की। गुलिस्ता ने डीएवी से ही गोल्ड मेडल के साथ एलएलबी की परीक्षा पास की। उन्होंने बताया कि उनकी तैयारी में उनके शिक्षक वीके माहेश्वरी और प्रयाग आईएएस अकादमी के निदेशक आरए खान का विशेष सहयोग रहा है।
पिता हाजी हुसैन ने बताया कि उनके पांच बेटियां और एक बेटा है। सबसे बड़ी बेटी जीनत ने बीएससी प्रथम श्रेणी से पास करने के बाद एमए सोशियोलॉजी में गोल्ड मेडल हासिल किया था।
वह शादी के बाद रुड़की में ही अपना स्कूल चला रही हैं। गुलिस्ता ने बताया कि इससे पूर्व उन्होंने एक बार परीक्षा दी थी लेकिन इंटरव्यू तक पहुंचने के बाद चूक गई थी। यह उनका दूसरा प्रयास था ।
दून की स्नेहा नारंग राणा बनीं जज
लोक सेवा आयोग की ओर से आयोजित उत्तराखंड न्यायिक सेवा सिविल जज जूनियर डिवीजन मुख्य परीक्षा-2019 में दून की स्नेहा नारंग राणा ना सिर्फ पारिवारिक दायित्वों के बीच जज बनीं, वरन परीक्षा में पांचवां स्थान हासिल कर अपनी प्रतिभा का परिचय दिया है।
जज स्नेहा नारंग राणा की प्रारंभिक शिक्षा दीक्षा देहरादून में हुई और बाद में वह दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक करने के बाद कानून की पढ़ाई और फिर एलएलएम की डिग्री हासिल की। पढ़ाई में अव्वल रहने के साथ साथ स्नेहा नारंग राणा राष्ट्रीय स्तर की बास्केटबॉल खिलाड़ी भी रह चुकी हैं और कई खेल प्रतियोगिताओं में हिस्सा लिया। स्नेहा नारंग राणा अपनी सफलता का पूरा श्रेय पति हरित राणा और सास आशा राणा के साथ ही पिता कृष्ण कुमार नारंग और मां बिंदिया नारंग को देती हैं।
अमर उजाला के साथ बातचीत में जज स्नेहा नारंग राणा ने बताया कि उन्हें उत्तराखंड न्यायिक सेवा सिविल जज जूनियर डिवीजन की परीक्षा में चौथे प्रयास में सफलता मिली है। पारिवारिक दायित्वों के बीच उन्हें जज बनने की तमन्ना थी। इसमें उनके पति हरित राणा, सास आशा राणा ने भरपूर सहयोग दिया। स्नेहा ने बताया कि उनके सात साल का बेटा है। स्नेहा का कहना है कि लोकतंत्र में न्यायपालिका प्रमुख स्तंभ है। ऐसे में न्यायपालिका से जुड़ना न सिर्फ उनके वरन पूरे परिवार के लिए गर्व का विषय है। स्नेहा ने कहा कि पीड़ित व्यक्ति को त्वरित और निष्पक्ष न्याय मिले, बतौर न्यायिक अधिकारी उनका यही पूरा प्रयास होगा।
कमजोरों की आवाज बनेंगी अलका
देहरादून की अलका ने तमाम पारिवारिक चुनौतियों को पार कर पीसीएस-जे में शानदार प्रदर्शन किया है। बेहद सामान्य परिवार में पली-बढ़ी अलका मेहनत के दम पर अब जज बनेंगी। अल्का कहती हैं कि समाज के कमजोर वर्ग को न्याय दिलाना उनकी प्राथमिकता होगी।
सुद्धोवाला झाझरा निवासी अलका ने बताया कि वे बचपन से ही देश की सेवा करना चाहती थीं। उनके पिता कृष्ण लाल प्रेमनगर में एक दुकान में मुंशी की नौकरी करते हैं। महीने में 10 से 12 हजार रुपये वेतन मिलता है। उनका एक छोटे भाई और एक बहन हैं।
इतनी आय में परिवार का गुजारा करना भी मुश्किल होता है। उन्होंने 12वीं की पढ़ाई श्रीगुरु नानक पब्लिक गर्ल्स इंटर कॉलेज प्रेमनगर से की। इसके बाद डीएवी पीजी कॉलेज से लॉ की पढ़ाई की। इसके बाद परीक्षा की तैयारी में लग गईं। लेकिन, इसके लिए कोचिंग की जरूरत महसूस हुई। उन्होंने प्रैक्टिस के साथ-साथ कोचिंग ली।
अलका ने बताया कि वे सफलता का श्रेय अपने पिता को देती हैं, जिन्होंने हमेशा उन्हें प्रेरित किया। उन्होंने हमेशा बच्चों के भविष्य के लिए बड़ा त्याग किया है। अल्का अब उन्हें अच्छा जीवन देना चाहती हैं। उन्होंने कहा कि वे कमजोर वर्ग के लोगों को न्याय दिलाएंगी ।
संतोष ने पूरा किया सपना
कुछ पाने का जुनून हो तो कोई लक्ष्य मुश्किल नहीं होता। ऐसी ही सोच रखने वाले संतोष पश्चिमी को सफलताएं कई मिलीं, लेकिन उन्हें तो जज से कम कुछ मंजूर ही नहीं था। कड़ी मेहनत के दम पर संतोष ने आखिरकार मंजिल हासिल कर ली।
संतोष ने बताया कि वे राजकीय विधि महाविद्यालय गोपेश्वर में कार्यरत हैं। उन्हें न्यायपालिका का हिस्सा बनने में बेहद रुचि थी। इसके लिए वे मेहनत भी करते रहे, लेकिन कुछ न कुछ कमी रह जाती।
उन्होंने कई अन्य परीक्षाएं पास की, लेकिन उन्होंने जज बनने की ठानी थी। नौकरी के व्यस्ततम शेड्यूल में भी वे पढ़ाई के लिए समय निकलते रहे। देहरादून में उन्होंने कोचिंग ली। संतोष के शिक्षक प्रयाग आईएएस एकेडमी के आरएस खान ने उनकी सफलता पर खुशी जाहिर की।
(अमर उजाला से साभार)