शिया वक्फ बोर्ड के पूर्व चेयरमैन वसीम रिजवी ने कुरान से 26 आयतों को हटाने का आदेश देने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है। इसके बाद से ही कई मुस्लिम संगठनों की तीखी प्रतिक्रिया देखने को मिली है। रिजवी के खिलाफ कार्रवाई की मांग की जा रही है। ऐसा ही एक मामला पहले भी सामने आ चुका है। अस्सी के दशक में वकील चांदमल चोपड़ा, शीतल सिंह और हिमांशु चक्रवर्ती ने यह मुद्दा उठाया था।
चक्रवर्ती ने 20 जुलाई 1984 को पश्चिम बंगाल सरकार के गृह सचिव को एक पत्र भेजकर कुरान की 85 आयतों को हटाने की मांग कर दी। चोपड़ा ने 29 मार्च 1985 को कोलकाता उच्च न्यायालय में ऐसी ही एक याचिका लगा दी।इसके बाद रातों रात भारत के महान्यायवादी (अटॉर्नी जनरल) बंगाल पहुंच गए। पाकिस्तान, बांग्लादेश और कश्मीर में हड़कंप मच गया था।
पाकिस्तान के मौलाना कौसर नियाजी ने ऑर्गेनाइजेशन ऑफ इस्लामिक कांफ्रेंस के चेयरमैन शरीफुद्दीन पीरजादा से संपर्क कर भारत को दुनिया में बदनाम करने का प्रयास किया। पड़ोसी मुल्क में शुक्रवार को विरोध दिवस मनाया गया।इस मामले से जुड़े अदालती तथ्यों को सीता राम गोयल ने अपनी किताब ‘द कलकत्ता कुरान पिटीशन’ में संकलित किया है। उन्होंने लिखा है, जैसे ही कोलकाता हाईकोर्ट के समक्ष यह मामला आया तो न केवल राज्य सरकार, बल्कि केंद्र सरकार भी हिल गई थी।
पाकिस्तान में अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री मकबूल अहमद खान ने यह मुद्दा उठा दिया। चोपड़ा ने कुरान की आयतों को लेकर जो याचिका लगाई थी, उसमें लिखा है कि कुरान के प्रकाशन से सेक्शन 195ए और 253ए का हनन होता है, इसलिए सीआरपीसी के सेक्शन 95 के अंतर्गत कुरान की प्रतियां जब्त की जाएं।