पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव से पहले भारतीय जनता दल अबतक 274 उम्मीदवारों की लिस्ट जारी कर चुकी है। जहां ध’र्मनिरपेक्ष दल हिं’दू कार्ड खेल रहे है, वहीं मु’स्लिम विरोधी दल की छवि होने के बावजूद भाजपा मु’स्लिम समुदाय के एक खास तबके का भरोसा अपने नाम करने की कोशिश में लगी है।
गुरुवार को भारतीय जनता पार्टी ने पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव के लिए 147 उम्मीदवारों की सूची को जारी किया। भाजपा मु’स्लिम समुदाय का भरोसा जितने के प्रयास में अब तक 8 मु’स्लिम उम्मीदवारों के नाम की घोषणा कर चुकी है। लोकसभा चुनाव में 18 सीटों पर जीत दर्ज करने वाली पार्टी ने विधानसभा चुनाव में 200 से अधिक सीटों पर जीत दर्ज करने का लक्ष्य तय किया है। हालांकि जिन सीटों पर भारतीय जनता दल ने मु’स्लिम प्रत्याशियों को टिकटें देने का फैसला किया हैं उन सीटों पर भाजपा के लिए जीतना लगभग असंभव है।
बीजेपी ने मु’स्लिम उम्मीदवारों को उन्हीं क्षेत्रों में उतारा है जहां मुस’लमानों की आबादी अधिक है। माफुजा खातून को छोड़ उन 8 नामों में एक भी बड़ा चेहरा नहीं है। 49 वर्षीय, मफूजा खातून को सागरदिघी से मैदान में उतारा गया है। वह 2019 में भाजपा के टिकट पर लोकसभा चुनाव भी लड़ चुकी हैं। वह लोकसभा चुनाव के लिए भाजपा की सबसे पहली मु’स्लिम महिला उम्मीदवार थीं। हालांकि उन्हें हार का सामना करना पड़ा था।
बरहामपुर निवासी मफूजा खातून वर्तमान में भारतीय जनता पार्टी के पश्चिम बंगाल इकाई की उपाध्यक्ष हैं। मफुजा ने 2001 और 2006 राज्य विधानसभा चुनावों में, सीपीआई (एम) की तरफ से कुमारगंज की सीट पर अपने प्रतिद्वंद्वियों अहमद अली सरदार और नानी गोपाल रॉय को अच्छे-खासे मतों से हराया था। दोनो प्रतिद्वंदी तृणमूल कांग्रेस से संबंध रखते थे। हालांकि सागरदिघी विधानसभा से तृणमूल कांग्रेस के दो बार रहे विधायक सुब्रता साहा को अभी हराना इतना आसान नहीं दिख रहा।
दूसरी तरफ मु’स्लिम बहुसंख्यक गोलपोखर विधानसभा क्षेत्र से एक अलग किस्म का मामला सामने आया है। क्षेत्र के विधायक और तृणमूल सरकार में मंत्री रहे गुलाम रब्बानी के सामने भाजपा ने उन्ही के भाई गुलाम सरवर को मैदान में उतरवा दिया है। गुलाम रब्बानी अपने क्षेत्र के कद्दावर नेता हैं। उन्होंने 2011 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की टिकट पर भी जीत दर्ज की थी और 2016 में तृणमूल कांग्रेस के टिकट पर भी। वहीं उनके भाई गुलाम सरवर के पास अनुभव की कमी है।
उत्तर दिनजपुर ज़िला के चोपरा विधानसभा क्षेत्र से भाजपा ने अपने पूर्व प्रत्याशी अशिमचंद्र बर्मन या सजेन राम सिंघा को टिकट न देते हुए एक अनजान मु’स्लिम चेहरे मोहम्मद शाहीन अख़्तर को चुना है। इस सीट पर मु’स्लिम प्रत्याशी की महत्वता को ऐसे ही समझी जा सकती है की 1957 से लेकर आज तक यहां से एक भी गैर-मुस्लिम जीत न सका है। पिछले चुनाव में जहां तृणमूल को इस सीट पर 74,390 और सीपीआई (एम) को 57,530 मत मिले थे तो भाजपा को मात्र 15,815 मतों से संतुष्ट होना पड़ा था।
पश्चिम बंगाल के जिला मालदह के जिस हरिशचंद्रपुर विधानसभा क्षेत्र से भाजपा ने नए चेहरे मोती उर रहमान पर भरोसा दिखाया है। वहां से भी पिछले 4 विधानसभा चुनावों से मु’स्लिम प्रत्याशियों का ही दब-दबा रहा है। मु’स्लिम बहुसंख्यक क्षेत्र में भाजपा के लिए जीत हासिल करना काफी कठिन साबित होगा। 2016 के चुनाव में इस सीट पर कांग्रेस के आलम मुस्ताक ने पिछले दो बार के विधायक रहे ऑल इंडिया फॉरवर्ड ब्लॉक के तजमुल हुसैन को 17,857 मतों से मात दिया था। ये देखना दिलचस्प होगा की भाजपा के मु’स्लिम प्रत्याशी ऐसे क्षेत्र में क्या कमाल दिखा पाएंगे।
भागवानगोला विधानसभा क्षेत्र से भाजपा ने दूसरी बार 41 वर्षीय महबूब आलम को टिकट दिया है। वैसे तो ज़िला मुर्शिदाबाद निवासी महबूब आलम काफी साफ छवि के व्यक्ति हैं। 2016 चुनाव में दायर शपतपत्र अनुसार उनका कोई अपराधिक रिकॉर्ड नही है। लेकिन शिक्षा के मामले में उन्होंने 8वीं कक्षा तक ही पढ़ाई कर रखी है। पेशे से खुद को व्यापारी बुलाने वाले महबूब की चल और अचल संपत्ति का कुल आंकड़ा 27 लाख 34 हज़ार है।
आपको बता दें की 1972 के बाद से इस सीट पर भी मु’स्लिम प्रत्याशी ही जीतते आ रहे हैं। 2016 विधानसभा चुनाव में भारतीय कम्यूनिस्ट दल (मार्क्सवादी) के प्रत्याशी मोहसिन अली ने भारी मतों के साथ तृणमूल कांग्रेस के उम्मीदवार को धूल चटाई थी। वहीं भाजपा के महबूब आलम को मात्र 5,278 मतों से ही संतुष्ट होना पड़ा था। उससे पहले 2011 के भी विधानसभा चुनाव में महबूब आलम को मात्र 2,638 लोगों का समर्थन मिल पाया था।
रानीनगर विधानसभा सीट के लिए भाजपा ने अपने प्रत्याशी के रूप में मु’स्लिम महिला मसूहारा खातून के नाम की घोषणा की है। पिछले चुनाव के परिणामों पर नज़र डाली जाए तो अंदाजा होता है की मु’स्लिम महिलाओं के लिए ये सीट काफी भरोसेमंद रही है। 2016 के चुनाव में इस सीट से कांग्रेस की प्रत्याशी फिरोजा बेगम ने ऑल इंडिया फॉरवर्ड ब्लॉक की प्रत्याशी को एक छोटे मतों के अंतर से मात दे दी थी। गौरतलब है की उस समय एआईएफबी के तरफ की भी प्रत्याशी मकसूदा बेगम के रूप में एक मु’स्लिम महिला ही थी।
जिस विधानसभा सीट पर 1962 के बाद से आज तक मु’स्लिम प्रत्याशियों का ही बोल-बाला हो वहां भाजपा द्वारा मु’स्लिम प्रत्याशी का उतारा जाना कोई चौंकाने वाली बात नही है। मालदा जिले के विधानसभा क्षेत्र सुजापुर के लिए भाजपा अपने दल का नेतृत्व नेता जियाउद्दीन से करवाने को तैयार है। पेशे से वकील जियाउद्दीन दिग्गज नेताओं के सामने कितना टिक पाएंगे ये तो समय ही बताएगा। आपको बता दें की इस सीट पर 1962 से आजतक कांग्रेस पार्टी को कोई हरा नही पाया है। वहीं भाजपा का औसत मत 2-3% ही रहा है।
डोमकल विधानसभा क्षेत्र से भाजपा ने 2017 में नगर पालिका उम्मीदवार रहीं कांग्रेस की रूबिया खातून को अपना उम्मीदवार बनाया है। मुर्शिदाबाद जिले के डोमकल विधानसभा में भी आज तक कोई गैर-मु’स्लिम विधायक न बन सका है। पिछले कई सालों से क्षेत्र में भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) का राज रहा है। विधायक अनीसुर रहमान 1991 से लगातार आजतक जीतते हुए आएं हैं। जहां सीपीआई को 2016 विधानसभा चुनाव में इस सीट पर 71,706 मत आएं थे और तृणमूल और कांग्रेस को 64,813 और 46,294 मत। वहीं भाजपा के खाते में सिर्फ 4,652 मत ही जा सके थे।
बंगाल के वरिष्ठ पत्रकार श्यामलेंदु मित्रा का कहना है कि “बंगाल में अभियानों के चलते लगातार बताया जा रहा है कि भाजपा मु’स्लिम विरोधी पार्टी है। अब जो ममता बनर्जी खुलकर हिंदू कार्ड खेल रही हैं, तो इसके जवाब में बीजेपी ने 8 मु’स्लिमों को टिकट दे दिया। हालांकि मफूजा खातून के इलावा बाकी सातों में किसी का भी उतना नाम नही है”
मित्रा के अनुसार, बंगाल के मुस’लमानों को भी 3 वर्गों में विभाजित किया गया है। एक जो पूरे धार्मिक हैं और धर्म का पालन करते हैं। दूसरे हैं, युवा मु’स्लिम, जो अब्बास सिद्दीकी का समर्थन कर रहे हैं। और तीसरी श्रेणी गरीब मुस’लमानों की है। टीएमसी या सीपीएम ने इन पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया है और उनके हालात भी बदतर हैं। इधर बीजेपी मुस’लमानों के इस वर्ग को अपने साथ जोड़ना चाहती है।”