किसान आंदोलन जोरों पर है. ऐसे माहौल में किसानों पर बनी फिल्मों का याद आना स्वाभाविक है. यहां हम चर्चित किसान फिल्मों की बात जरूर करेंगे, लेकिन कुछ हटकर. दूसरी जरूरी बातों के साथ हम इनसे जुडे़ कुछ दिलचस्प किस्सों और रोचक तथ्यों पर भी बात करेंगे. बालीवुड में किसान पर बहुत कम फिल्में बनी हैं चर्चित और प्रशंसित फिल्मों की तलाश की जाए तो कुल जमा पांच फिल्में ही सामने आती हैं. इनमें दो बीघा जमीन (1953), मदर इंडिया (Mother India) (1957), उपकार (1967), लगान (Lagaan) (2001) और पीपली लाइव(2010).
सबसे चर्चित और बॉक्स ऑफिस पर सफलता के झंडे गाड़ने वाली फिल्म थी मदर इंडिया. दो बीघा जमीन ने भी खूब प्रशंसा बटोरी. उपकार सुपर हिट तो थी ही मनोज कुमार (Manoj Kumar) की भारत कुमार की छवि इसी फिल्म ने गढ़ी थी. पीपली लाइव (Peepli Live) किसानों के अलावा, मीडिया की हर हाल में टीआरपी बटोरने जैसे मुद्दों पर भी बात करती है. किसान पर सबसे चर्चित फिल्म का दर्जा लगान को दिया जा सकता है. ये फिल्म आस्कर दरवाजे तक सीरियसली पहुंचने वाली फिल्म भी थी.
इसी फिल्म से जुड़़े एक दिलचस्प किस्से से शुरूआत करते हैं. यह कहानी आमिर से एक रूबरू सुनी है. आमिर के शब्दों में, ‘जब मैंने लगान की कहानी सुनी थी, पांच मिनिट नरेशन में आशुतोष की, मैंने रिजेक्ट कर दी थी. के भाई, उस वक्त की बात है, 1895 की, के बारिश नहीं हो रही है तो लोग (किसान) लगान नहीं दे पा रहे हैं, तो ये अंग्रेज के अगेन्स्ट क्रिकेट खेलते हैं, अपना लगान माफ कराने के लिए. तो मैंने कहा यार ये क्या बेज़ार थॅाट है. एण्ड आई टोल्ड, आशु, हम हमारी बिल्डिंग में नीचे बैठे हुए थे; मैंने कहा यार आशु तेरी एक फिल्म फ्लॉप हो गई, दूसरी मेरे साथ बनाई वो भी नहीं चली, अब तू तीसरी ये कहानी ले के आया है. प्लीज़ यार, ऐसा मत कर, कोई अच्छी कहानी ला, ये तो बहुत अजीब लगी मुझे. तो वो ग़ायब हो गया, मेरी जि़ंदगी से, ग़ायब हो गया आशुतोष.
तीन महीने बाद उसका फोन आया, यार मेरे पास एक फुल्ली डेवलप्ड स्क्रिप्ट है, मैं सुनाना चाह रहा हूं. आई सेड हां, मिलते हैं एक दो हफ्ते में, मैंने उसको वक्त दिया. फिर मुझे लगा ये वो ही कहानी को तो डेवलप्ड करके नहीं ले आया. मैंने उसको फोन किया यार आशु ये वोई कहानी तो नहीं है, क्रिकेट वाली, उसने बोला तू सुन तो ले, मैं बोला नहीं, अगर ये क्रिकेट वाली है तो मैं नहीं सुनने वाला, मैं नहीं सुनने वाला हूं. तो उसने कहा यार सुन ले तीन महीने की मेहनत है. तो मुझे इतनी इरिटेशन हुई, मैंने उसको बोला था, मत इसपे काम कर, खैर अब दोस्त है, उसने कहा कि मैंने तीन महीने काम किया है, तो मैंन कहा सुन लेते हैं. अब सुनके ना ही बोलना है, तो सुन लेते हैं.
जब मैंने उसकी स्क्रीनप्ले सुनी बाबा, आई वाज़ ब्लोन यार. पहले सीन से मै अंदर घुसा हूं उस फिल्म के, तोअअअअ…. मुझे रियलाइज़ हुआ… के कहानी और स्क्रीनप्ले में बहुत बड़ी जर्नी है. आप कहानी पे जज मत कीजिए. आपको अच्छी लगे या बुरी लगे, प्लीज़ उसको कहानी के लेबल पर जज मत कीजिए.’